by adminadda on | 2023-10-26 15:46:18 126
"समय के साथ बदलते रिश्ते की कहानी: एक कटु सत्य की कहानी"
निवेदन है की दो मिनट का टाइम निकाल कर जरूर पढ़े
ये बकवास नहीं है सच्चाई है समाज की
एक कटु सत्य..!
पुराने समय में रिश्तों की महत्वपूर्ण भूमिका थी, जब सामाजिक परंपरा और सँस्कार रिश्तों के आधार पर खड़ी थीं। परंतु, आजकल के समय में एक नया वायदा रिश्तों को सौदों का माध्यम बना देता है। यह कहानी एक ऐसे समाज की है जिसमें रिश्तों की मूल्य कम हो गई है और व्यक्तिगत लाभ की ओर ध्यान केंद्रित हो गया है। अब रिश्ते नही सौदे होते हैं। बस यहीं से सब कुछ गड़बड़ हो रहा है।
आजकल के युवाओं मैं एक तरह से मॉडर्न सोच आ गई हैं जिसकी वजह से वे रिश्तो को निभाना एक फैशन समझते हैं। अब ऐसा समय आया हैं की किसी भी माँ बाप मे अब इतनी हिम्मत शेष नही बची कि बच्चों का रिश्ता अपनी मर्जी से कर सकें। पहले घर के बुजुर्गों से पूछ के सादी को बात चलती थी और अब उन्हें अब फैसले लेने के बाद बताया जाता हैं। पहले के लोग लड़का लड़की के खानदान देखते थे। सामाजिक पकड़ और सँस्कार देखते थे और अब ....
मन की नही तन की सुन्दरता , नोकरी , दौलत , कार , बँगला। यह सब देखते हैं। और अब लड़कीयो को
साइकिल , स्कूटर वाला राजकुमार नही चाहिये । सब की पसंद कारवाला ही है। भले ही इनकी संख्या 10% ही हो । और लड़के वालो को लड़की बड़े घर की चाहिए ताकि भरपूर दहेज मिल सके और लड़की वालोँ को पैसे वाला लड़का ताकि बेटी को काम करना न पङे।
नोकर चाकर हो। और आजकल के युवाओं को बड़ा परिवार नहीं चाइए । जबकि पहले के लोग एक बड़ा परिवार लेके चलते थे पर अब सभी को परिवार छोटा ही चाइए ।ताकि उनकी लड़की को काम न करना पङे और इन सभी वजहों के कारण परिवार कुछ ज्यादा ही छोटा हो गया है। पहले के लोग आपस मै बैठके बातचीत करते थे।पर अब सब फोन पे ही सब फिक्स हो जाता हैं।
पहले रिश्तो मे लोग कहते थे कि मेरी बेटी घर के सारे काम जानती है और अब....
हमने बेटी से कभी घर का काम नही कराया यह कहने में शान समझते हैं। आजकल लोग एक रिश्ता नही जोड़ते वो एक प्रॉपर्टी डील करते हैं जहा उन्हे सब चाइए। और इन्हें रिश्ता नही बेहतर की तलाश है। आजकल तो लोग रिश्तों को एसे देखते हैं की जैसे कही रिश्तों का बाजार सजा हुआ है , जैसे गाङियों की तरह। शायद और कोई नयी गाङी लांच हो जाये। अजीब सा तमाशा हो रहा है। अच्छे की तलाश मे सब अधेड़ हो रहे हैं। और बेहतरीन को नहीं पहचान पा रहे हैं।
इसी चक्कर मे उम्र बढ रही है।अब इनको कौन समझाये कि एक उम्र मे जो चेहरे मे चमक होती है वो अधेङ होने पर कायम नही रहती , भले ही लाख रंगरोगन करवा लो ब्युटिपार्लर मे जाकर।
एक चीज और संक्रमण की तरह फैल रही है। नोकरी वाले लङके को नोकरी वाली ही लङकी चाहिये। पर वो लड़का भुल जाता हैं की जब उसकी पत्नी जॉब पे जायेगी,तो क्या वो उसको या फिर उसके मां बाप का ध्यान रख पाएगी।
अब जब वो खुद ही कमायेगी तो क्यों आपके या आपके माँ बाप की इज्जत करेगी.?
खाना होटल से मँगाओ या खुद बनाओ
बस यही सब कारण है आजकल अधिकाँश तनाव के
एक दूसरे पर अधिकार तो बिल्कुल ही नही रहा। उपर से सहनशीलता तो बिल्कुल भी नहीं। इसका अंत आत्महत्या और तलाक
घर परिवार झुकने से चलता है , अकड़ने से नहीं.।
जीवन मे जीने के लिये दो रोटी और छोटे से घर की जरूरत है बस और सबसे जरुरी आपसी तालमेल और प्रेम प्यार की लेकिन.....
आजकल बङा घर व बड़ी गाड़ी ही चाहिए चाहे मालकिन की जगह दासी बनकर ही रहे।
आजकल हर घरों मे सारी सुविधाएं मौजूद हैं....
कपङा धोने की वाशिँग मशीन
मसाला पीसने की मिक्सी
पानी भरने के लिए मोटर
मनोरंजन के लिये टीवी
बात करने मोबाइल
फिर भी असँतुष्ट...
पहले ये सब कोई सुविधा नहीं थी। पूरा मनोरंजन का साधन परिवार और घर का काम था , इसलिए फालतू की बातें दिमाग मे नहीं आती थी।
न तलाक न फाँसी
आजकल दिन मे तीन बार आधा आधा घँटे मोबाइल मे बात करके , घँटो सीरियल देखकर , ब्युटिपार्लर मे समय बिताकर।
मैं जब ये जुमला सुनती हुँ कि घर के काम से फुर्सत नही मिलती तो हंसी आती है। बहनो के लिये केवल इतना ही कहूँगी की पहली बार ससुराल हो या कालेज लगभग बराबर होता है। थोङी बहुत अगर रैगिँग भी होती है तो सहन कर लो।
कालेज मे आज जूनियर हो तो कल सीनियर बनोगे। ससुराल मे आज बहू हो तो कल सास बनोगी।
समय से शादी करो। स्वभाव मे सहनशीलता लाओ। परिवार में सभी छोटे बडों का सम्मान करो। ब्याज सहित वापिस मिलेगा।
आत्मघाती मत बनो। जीवन मे उतार चढाव आता है। सोचो समझो फिर फैसला लो। बङो से बराबर राय लो। उनके उपर और ऊपर वाले पर विश्वास रखो
विचार करे की हम कहा से कहा आ गये...!!
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